Connect with us

एम्स ऋषिकेश में तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन

उत्तराखंड

एम्स ऋषिकेश में तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन

जूनोटिक एवं वायरल रोगों की डायग्नोस्टिक तकनीकों के बारे में व्यावहारिक प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से एम्स ऋषिकेश में तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। विशेषज्ञों द्वारा बताया गया कि इन रोगों की तत्कालिक पहचान और रोकथाम के लिए उन्नत डायग्नोस्टिक तकनीकों को अपनाया जाना जरूरी है।

नेशनल वन हेल्थ प्रोग्राम फॉर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ जूनोटिक डिजीजेस (एन.ओ.एच.पी-पी.सी.जेड) और वायरल रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक लेबोरेटरी (वी.आर.डी.एल) के संयुक्त तत्वावधान में एम्स ऋषिकेश में आयोजित कार्यशाला में विभिन्न राज्यों से आए एम.एस.सी व पीएचडी छात्रों सहित बड़ी संख्या में शोधार्थी और रिसर्च स्काॅलर्स शामिल हुए। कार्यक्रम का उद्देश्य प्रतिभागियों को जूनोटिक एवं वायरल रोगों की डायग्नोस्टिक तकनीकों में व्यावहारिक प्रशिक्षण देना था। ’हैंड्स ऑन वर्कशाॅप फाॅर डायग्नोस्टिक टेक्नीक ऑफ जूनोटिक एण्ड वायरल पैथोगन’ विषय पर आधारित इस कार्यशाला को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रो. मीनू सिंह ने वन हेल्थ अवधारणा पर जोर दिया। उन्होेंने कहा कि आज के वैश्विक स्वास्थ्य संकटों के संदर्भ में मानव, पशु और पर्यावरण के स्वास्थ्य को एक साथ देखने की आवश्यकता है। कहा इस प्रकार की कार्यशालाओं से प्रतिभागियों को न केवल व्यावहारिक अनुभव मिलता है अपितु इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली भी सुदृढ़ होती है।
डीन (रिसर्च) प्रोफेसर शैलेन्द्र हांडू ने जूनोटिक और वायरल रोगों को वैश्विक स्वास्थ्य के लिए खतरा बताया। कहा कि यह कार्यशाला इस विषय में एक प्रभावी कदम सिद्ध होगी।

यह भी पढ़ें 👉  प्रधानमंत्री एवं केंद्रीय गृह मंत्री ने मुख्यमंत्री धामी से उत्तराखंड में अतिवृष्टि की विस्तृत जानकारी प्राप्त की

माइक्रोबायोलॉजी विभाग के हेड और प्रमुख अन्वेषक (पी.आई.वी.आर.डी.एल) प्रो. योगेन्द्र प्रताप माथुरिया ने जूनोटिक रोगों की पहचान में आने वाली तकनीकी चुनौतियों और नवीनतम डाइग्नोस्टिक विधियों पर आधारित ज्ञानवर्धक सत्र को संबोधित किया। उन्होंने प्रतिभागियों को वर्तमान वैश्विक संदर्भ में वायरल संक्रमणों के नियंत्रण की वैज्ञानिक पद्धतियों से अवगत कराया। नेशनल वन हेल्थ प्रोग्राम के नोडल अधिकारी डाॅ. महेन्द्र सिंह ने जूनोटिक रोगों की डायग्नोस्टिक तकनीकों, विशेषकर ईएलआईएसए और पीसीआर पर केंद्रित व्याख्यान दिया। उन्होंने इन तकनीकों की वैज्ञानिक आधार, संवेदनशीलता, विशिष्टता और प्रयोगशाला में क्रियान्वयन के व्यावहारिक पहलुओं के बारे में बारीकी से जानकारी दी। जबकि विभाग के डॉ. अम्बर प्रसाद ने गुड लैबोरेटरी प्रैक्टिस (जीएलपी) पर वक्तव्य देते हुए प्रयोगशाला में गुणवत्ता, सैंपल प्रबंधन और सुरक्षा मानकों की महत्ता को रेखांकित किया।

यह भी पढ़ें 👉  ग्राउंड जीरो पर जिलाधिकारी प्रतीक जैन, मक्कुमठ पहुंचकर सुनी ग्रामीणों की समस्याएं, किया त्वरित निस्तारण

डॉ. सुकृति यादव ने आरटी-पीसीआर तकनीक पर व्यावहारिक प्रशिक्षण सत्र लिया। जबकि डॉ. शैलेश गुप्ता, डॉ. शैलेन्द्र नेगी, डॉ. दीक्षा, डॉ. प्रियंका, डॉ. अर्पित मिश्रा और डॉ. गौरव बडोनी आदि विशेषज्ञों ने भी विभिन्न तकनीकी विषयों पर व्याख्यान एवं प्रशिक्षण सत्र प्रदान किए। इनमें वायरल सैंपलिंग, रोग प्रसार की निगरानी, डाटा एनालिसिस और क्लिनिकल एप्लिकेशन शामिल थे।
कार्यशाला में आयोजन समिति के सदस्यों नीरज रणकोटी, आशीष नेगी, दिक्षा कंडवाल, नीरज भट्ट, तान्या और अंकुर सहित कई अन्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

यह भी पढ़ें 👉  बीमारियों का बोझ घट सकता है एक-तिहाई, ‘हेल्थ बेनिफिट असेसमेंट डैशबोर्ड’ ने खोला राज़
Continue Reading
Advertisement

More in उत्तराखंड

उत्तराखंड

उत्तराखंड

ADVERTISEMENT

Advertisement
Advertisement

ट्रेंडिंग खबरें

ADVERTISEMENT

Advertisement
To Top