Connect with us

 टिहरी प्रजा मंडल के प्रथम अध्यक्ष, सांसद और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिपूर्णानन्द पैन्यूली की जयंती पर विशेष…

उत्तराखंड

 टिहरी प्रजा मंडल के प्रथम अध्यक्ष, सांसद और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिपूर्णानन्द पैन्यूली की जयंती पर विशेष…

टिहरी प्रजा मण्डल के प्रथम अध्यक्ष, टिहरी संसदीय क्षेत्र के पूर्व सांसद व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिपूर्णानन्द पैन्यूली को उनकी जन्म जयंती (19 नवम्बर 1924) पर क्षेत्रवासियों और जनप्रतिनिधियों ने श्रद्धा-सुमन अर्पित कर याद किया है।

क्षेत्रवासियों और जनप्रतिनिधियों ने कहा कि कुछ लोगो का जीवन अपने समाज, अपने देश प्रदेश के लिए समर्पित रहता है, कड़े संघर्षों को करके अपने महान कार्यों के बूते वो अपने जीवनकाल में महान कार्य करते हैं जिन असाधारण कार्यों से वो सदैव के लिए अमर हो जाते हैं।आज ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी की जन्म जयंती है,जिनका नाम है परि पूर्णानन्द पैन्यूली,

स्व परि पूर्णानन्द पैन्यूली का जन्म आज के ही दिन 1924 को टिहरी रियासत के छोल गांव में हुआ था। इसके पिता कृष्ण नन्द पैन्यूली तत्कालीन टिहरी रियासत में इंजीनियर थे तो इनके दादा राघवा नन्द पैन्यूली टिहरी रियासत के दीवान रहे।

राघवानन्द जी लिखवार गांव के निवासी थे जो कालांतर में निकट के बनियानी व उसके बाद टिहरी में रहने लगे,बाद में उनके इंजीनियर पुत्र कृष्णा नन्द पैन्यूली छोल गांव में रहने लगे जहां परि पूर्णानन्द पैन्यूली जी का जन्म हुआ।एक अच्छे परिवार में जन्मे परि पूर्णानन्द जी के मन मै टिहरी रियासत में टिहरी राजा की गुलामी व देश में अंग्रेजो की गुलामी के प्रति भारी गुस्सा था, वो मात्र 17 वर्ष की उम्र में देश की आजाद के आंदोलन में कूद पड़े,ऐतिहासिक भारत छोड़ो यात्रा में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई,

जिस कारण अंग्रेजो ने उन्हें 6 वर्ष के सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई,जिस दौरान उन्हें लखनऊ,मेरठ, टिहरी की जेलों में बन्द रखा गया। ब्रिटिश सरकार की जेलों से मुक्त होने के बाद परि पूर्णानन्द पैन्यूली जी ने सामंत शाही,टिहरी राजा के खिलाफ आंदोलन का बिगुल बजाया व टिहरी में जनक्रांति के आंदोलन का नेतृत्व किया जिस कारण टिहरी के तत्कालीन राजा ने उन्हें 1946 में जेल में डाल दिया, वो दिसम्बर की कड़कड़ाती ठंड में टिहरी जेल की दीवार से कूदकर भिलंगना व भागीरथी नदी के ठंडे पानी में तैरकर फरार हुए व साधु के वेश में चकराता पहुंचे।

यह भी पढ़ें 👉  Transformer votre vie - eBook [PDF, EPUB]

फिर देहरादून से दिल्ली पहुंचे जहां तब उनकी मुलाकात गांधी जी, जवाहर लाल नेहरू, व अन्य लोगो से हुई, वो रामेश्वर शर्मा नाम से आजादी की लड़ाई व टिहरी की आजादी के लिए संघर्ष करते रहे,तब मुंबई में उनकी मुलाकात गोविन्द ब्बल्लभ पंत से हुई उन्होंने उनसे ऋषिकेश व देहरादून के निकट रहकर आंदोलन को जारी रखने को कहा। परि पूर्णानन्द पैन्यूली जी ने 1946 के टिहरी राजशाही के भू बंदोबस्त कानून का विरोध किया,तब राजा ने इस कानून का विरोध कर रहे परि पूर्णानन्द पैन्यूली व दादा दौलतराम को जेल में डाल दिया।

जेल में बन्द इन दोनों क्रांतिकारियों ने 13 सितम्बर 1946 को अपनी तीन मांगो जिनमे रजिस्ट्रेशन एक्ट रद्द करने,वस्यक मताधिकार पर चुनाव कराने व पुलिस अत्याचारों की जांच कराने की मांग पर जेल में ही बन्द भूदेव लखेड़ा,इन्द्र सिंह,टीकाराम भट्ट आदि के साथ भूख हड़ताल शुरू की, देशी राज्य लोक परिषद् के नेता जयप्रकाश व्यास के अनुरोध पर 22 सितम्बर 1946 को उन्होंने भूख हड़ताल खतम की।

उन्हें युवा अवस्था में ही प्रजा मण्डल का अध्यक्ष चुना गया,वो श्रीदेव सुमन,मोलू भरदारी,नागेन्द्र सकलानी, त्रेपन सिंह नेगी,खुशहाल सिंह रांगड,लक्ष्मी प्रसाद पैन्यूली आदि लोगों के साथ टिहरी राज शाही के खिलाफ लड़ते रहे,देश की आजादी के बाद जब 1949 में टिहरी रियासत आजाद हुईं तब के ऐतिहासिक दस्तावेजों पर परि पूर्णानन्द पैन्यूली जी के हस्ताक्षर है,तब यदि टिहरी एक जिले के बजाय एक पहाड़ी प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आता तो निसंदेह परि पूर्णानन्द पैन्यूली ही पहले मुख्यमंत्री बनते लेकिन टिहरी रियासत अलग राज्य न बन सका,बल्कि संयुक्त प्रांत यानि उत्तरप्रदेश के एक जिले के रूप में अस्तित्व में आया।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से शास्त्री व आगरा विवि से एम ए की शिक्षा प्राप्त करने वाले परि पूर्णानन्द पैन्यूली जी एक लेखक,देश के जाने माने पत्रकार रहे,उन्होंने दो दर्जन से अधिक पुस्तकें भी लिखी है,उनकी प्रसिद्द किताब ‘देशी राज्य व जन आंदोलन’ की प्रस्तावना डॉ पटाभी सीतारमैय्या जी ने 1948 में लिखी ,उनकी प्रसिद्ध किताब ‘ नेपाल का पुनर्जागरण,की प्रस्तावना जाने माने शिक्षा शास्त्री व उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे डॉ संपूर्णानंद जी ने लिखा,

यह भी पढ़ें 👉  Los funerales de la Mamá Grande - [PDF, EPUB, eBooks]

उनकी एक और प्रसिद्ध पुस्तक ‘ संसद व संसदीय प्रक्रिया ‘की प्रस्तावना काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के कुलपति रहे,आचार्य नरेन्द्र देव ने लिखी,आप 50 वर्षों से अधिक समय तक हिंदुस्तान टाइम्स से जुड़े रहे। आप देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पत्रकारों में एक रहे।देश की आजादी के बाद आपने समाज के पिछड़ों, व वंचितों को उनका हक दिलाने के लिए असाधारण कार्य किए,हरिजनों को बदरी केदार,गंगोत्री ,यमुनोत्री जैसे मन्दिरों में पहली बार तमाम विरोध के बाद आपने दर्शन कराए,हिमाचल प्रदेश में आपने तमाम विरोध के बाद हरिजनों को सवर्णों के पानी के स्त्रोत्र से पानी भरवाया,

जिसके लिए आपको जेल भी जाना पड़ा।1962-63 में यायावर मुस्लिम गुजरो को पोंटा साहिब व दून घाटी में बसाया,उन्होंने जनजातीय हरिजन महिलाओं को अनैतिक कार्य से विरत करके उन्हें चकराता में बसाया,आपका अशोक आश्रम चकराता,कालसी सदैव समाज के पिछड़े लोगों के उत्थान में कार्य करता रहा है।

परि पूर्णानन्द पैन्यूली जी का राजनीतिक जीवन स्वतन्त्रता आंदोलन व टिहरी रियासत के खिलाफ आंदोलन से शुरू हुआ,वो प्रजा मण्डल टिहरी के प्रथम अध्यक्ष बने,वो हिमालयन हिल स्टेट (आज हिमाचल प्रदेश)कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे,1971 में आपने टिहरी के महराजा रहे पूर्व सांसद मानवेन्द्र शाह को हराकर टिहरी संसदीय क्षेत्र का संसद में प्रतिनिधित्व किया,आप 1972-74 में यूपी पर्वतीय विकास निगम के अध्यक्ष रहे ,

आपने पर्वतीय क्षेत्रों के विकास के लिए तमाम कार्य किए,हरिजनों व पिछड़ों के लिए आपने तमाम बड़े कार्य किए,आप देश की संसद में सांसद रहते लोक लेखा समिति व आकलन समिति के सदस्य भी रहे साथ ही 3 वर्षों तक आप कार्यान्वयन समिति के सदस्य भी रहे।1973 में गठित एकीकृत जन जाति विकास समिति को लाने का श्रेय आपको ही जाता है।

आपके तमाम कार्यों के बूते आपकी समाज में एक बड़ी पहचान बनी,आपको 1996 में अम्बेडकर सम्मान से भी सम्मानित किया गया। इन सबके बावजूद मुझे कहने में कोई हिचक नहीं कि ऐसे महान क्रांतिकारी के नाम पर उत्तराखंड में न कोई सड़क है न कोई संस्थान है न कोई स्मृति स्थल हैं,जबकि मैंने कई बार इनके नाम से प्रतापनगर व टिहरी में कोई संस्थान रखने की मांग की,

यह भी पढ़ें 👉  बारातियों से भरा वाहन हुआ दुर्घटनाग्रस्त, 2 गंभीर घायलों को किया गया हायर सेंटर रेफर

प्रतापनगर में कुछ लोग जिनमे बड़े नेता व बडे़ अधिकारी तक है तर्क देते हैं उनका पता छोल गांव का है या देहरादून का है तो वहीं बनेगा, अरे भई आप उत्तराखण्ङ में कहीं भी बनाओ पर उनके नाम पर कोई संस्थान जरूर रखो,आप जौनसार में ही खोल दो उनके नाम पर कुछ,हम ऋषि सुनक को अपना मान लेते हैं,

कमला हैरिस को अपना मान लेते हैं लेकिन जिन्होंने हमारे देश की आजादी में जेल की यात्रा की,जिन्होंने टिहरी रियासत को अलग किया ऐसे महान क्रांतिकारी को हम भूलते जा रहे हैं जो हमारे लिए बेहद दुखद बात भी है।ये मेरा सौभाग्य है कि उनके जीवन के आखिरी समय में उनके दर्शनों व उनके आशीर्वाद का अवसर मुझे मिला,उनके मुंह से मैंने तमाम उनकी स्मृतियों को सुना, व जब 13 अप्रैल 2019 को देहरादून में उनका निधन हुआ तब मै एक पारिवारिक सदस्य के रूप में उनकी अंत्येष्टि में सम्मिलित हुआ,वो जब भी मिलते थे अपने मूल गांव लिखवार गांव को बहुत याद करते थे,

उनकी यादों में टिहरी गढ़वाल सदैव रहा,आज यदि वो होते तो 98 वर्ष पूर्ण करके 99 वर्ष में प्रवेश करते,उनकी चार बेटियां हैं,उनके भाई सच्चिदा नन्द पैन्यूली भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जो जाने माने समाज सेवी थे,अब वो भी नहीं रहे, परि पूर्णानन्द पैन्यूली जी की पत्नी कुंतिरानी पैन्यूली देश के प्रतिष्ठत स्कूल वेल्हम कॉलेज देहरादून में शिक्षिका थी,

आज उत्तराखंड की विधानसभा में डोईवाला से उनके भांजे बृज भूषण गैरोला विधायक है,उनके छोटे दामाद मनोज गैरोला जाने माने पत्रकार हैं।जन्म जयंती पर टिहरी के लाल,महान क्रांतिकारी परि पूर्णानन्द पैन्यूली जी को मेरा कोटि कोटि नमन चन्द्रशेखर पैन्यूली प्रधान, लिखवार गांव प्रतापनगर टिहरी गढ़वाल।
साभार: बृजभूषण गैरोला, वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी और डोईवाला विधायक।

Continue Reading
Advertisement
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

More in उत्तराखंड

उत्तराखंड

उत्तराखंड
Advertisement

ADVERTISEMENT

ADVERTISEMENT

Advertisement
Advertisement

ट्रेंडिंग खबरें

To Top