Connect with us

गुरु-शिष्य अभियान: 38वें राष्ट्रीय खेल की अनोखी पहल

उत्तराखंड

गुरु-शिष्य अभियान: 38वें राष्ट्रीय खेल की अनोखी पहल

38वें राष्ट्रीय खेल ने खेल और संस्कारों की परंपरा को ध्यान में रखते हुए “गुरु-शिष्य अभियान” की शुरुआत की है। इस अभियान का उद्देश्य खिलाड़ियों के साथ-साथ उनके प्रशिक्षकों के अतुलनीय योगदान को भी सामने लाना है। भारतीय संस्कृति में गुरु और शिष्य का संबंध हमेशा से महत्त्वपूर्ण रहा है। गुरु अपने शिष्य को न केवल खेल में बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सफल बनाने के लिए अथक प्रयास करता है।

गुरु-शिष्य के इस पवित्र रिश्ते और प्रशिक्षकों की कड़ी मेहनत को सराहने के लिए सरकार हर साल उन्हें द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित करती है। यह पुरस्कार उनके अथक परिश्रम और खेल जगत में उनके योगदान को मान्यता देता है।

यह भी पढ़ें 👉  डीएम ने अपंजीकृत मदरसों के सम्बन्ध बैठक कर अधिकारियों को दिए आवश्यक दिशा-निर्देश…

38वें राष्ट्रीय खेल का यह अभियान गुरु-शिष्य के इस अद्वितीय संबंध को सम्मानित करता है। जब शिष्य जीतता है, तो गुरु का सपना पूरा होता है। यही संदेश इस अभियान के माध्यम से खेल प्रेमियों तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।

38वें राष्ट्रीय खेल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री अमित कुमार सिन्हा ने गुरु शिष्य के रिश्ते पर बात करते हुए कहा की, “हाल ही में उत्तराखंड के पैराशूटिंग कोच सुभाष राणा को द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने मनीषा नरवाल, रुबिना फ्रांसिस, सिंहराज और अवनी लेखरा जैसे कई एथलीटों को प्रशिक्षित किया है। इन खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतकर न केवल भारत का गौरव बढ़ाया, बल्कि अपने कोच के सपनों को भी साकार किया। “

यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड सरकार और आइसलैंड की कंपनी वर्किस कंसलटिंग इंजिनियर्स के मध्य हुआ MoU

भारतीय खेल जगत में ऐसे कई उदाहरण हैं जो गुरु-शिष्य के इस अनमोल रिश्ते को दर्शाते हैं। पीवी सिंधु की सफलता के पीछे उनके कोच पुलेला गोपीचंद का दृढ़ संकल्प और अनुशासन रहा है। गोपीचंद ने सिंधु को केवल एक खिलाड़ी नहीं बल्कि एक प्रेरणा बनाने का काम किया। पीटी उषा और उनके कोच ओथायोथु माधवन नांबियार का संबंध भी इसी गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक है।

नांबियार ने पीटी उषा के शुरुआती दिनों में उन्हें सही दिशा और प्रशिक्षण दिया। भारतीय फुटबॉल को ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले महान कोच सैयद अब्दुल रहीम की कहानी भी इसी रिश्ते का प्रमाण है। उनके नेतृत्व में भारत ने 1956 के ओलंपिक में फुटबॉल के सेमीफाइनल तक का सफर तय किया। रहीम साहब ने अपने खिलाड़ियों को प्रेरित कर इतिहास रचने की ताकत दी। उनकी प्रेरणादायक कहानी पर आधारित फिल्म “मैदान” ने उनके योगदान को उजागर किया है।

यह भी पढ़ें 👉  लोक संस्कृति एवं गढ़ भोज की महक..

यह अभियान 38वें राष्ट्रीय खेल की आधिकारिक वेबसाइट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से चलाया जा रहा है, ताकि यह संदेश अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे और प्रशिक्षकों की मेहनत को वह सम्मान मिल सके, जिसके वे हकदार हैं।

Continue Reading
Advertisement

More in उत्तराखंड

उत्तराखंड

उत्तराखंड

ट्रेंडिंग खबरें

Advertisement
To Top

https://www.eastgardenpoughkeepsie.com/