Connect with us

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध पुस्तक का लोकार्पण

उत्तराखंड

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध पुस्तक का लोकार्पण

देहरादून: दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र कि ओर से आज अपराह्न 4:00 बजे लेखक और शिक्षविद देवेश जोशी की पुस्तक गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध का लोकार्पण केंद्र के सभागार में किया गया।

लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर श्रीमती राधा रतूड़ी मुख्य सचिव उत्तराखण्ड शासन थीं. मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने कहा कि छ: वर्षों के अथक परिश्रम और गहन शोध के आधार पर लिखी गयी ये पुस्तक निश्चित ही इस क्षेत्र की समृद्ध सैन्य परम्परा का ऐतिहासिक परिदृश्य प्रस्तुत करती है।

विशिष्ट अतिथि प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक अनिल रतूड़ी ने कहा कि प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व भारत में ही नहीं बल्कि ब्रिटिश सेना के भीतर भी गढ़वालियों की कोई विशिष्ट पहचान नहीं थी। इस युद्ध ने गढ़वालियों को पहली बार एक विश्वव्यापी पहचान दिलायी। विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान के लिए यहाँ पृथक राज्य आंदोलन के बाद उत्तराखण्ड राज्य का गठन हुआ। विशिष्ट पहचान के अंकुर वस्तुत: पहली बार ब्रिटिश भारतीय सेना की एक गढ़वाल रेजीमेंट बनाने की चाहत के रूप में दिखायी दिये थे। उल्लेखनीय हैं की इस पुस्तक की भूमिका श्री रतूड़ी ने ही लिखी है।

यह भी पढ़ें 👉  17 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक जनपद में आयोजित होगा “सेवा पखवाड़ा”, विभिन्न विभाग करेंगे जनकल्याणकारी कार्यक्रमों का आयोजन

समारोह के अध्यक्षता करते हुए गढ़गौरव नरेन्द्र सिंह नेगी ने कहा कि गढ़वाली लोकगीतों में उपलब्ध विश्वयुद्ध के संकेतों के विश्लेषण से पुस्तक की प्रामाणिकता और भी निकली है, क्योंकि लोक सदैव असंदिग्ध होता है। इसी तरह गढ़वाली सैनिकों के लाम से लिखे गये 9 दुर्लभ सेंसर किये गये पत्र भी एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ के रूप में हैं।

दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने कहा कि इस पुस्तक में 1914 से लेकर 1921 तक गढ़वाली सैनिकों के द्वारा प्रथम विश्वयुद्ध में शौर्यपूर्ण प्रतिभागिता का प्रामाणिक वर्णन है, प्रमुख योद्धाओं पर अलग से अध्याय हैं और प्रथम विश्वयुद्ध के समय गढ़वाल के परिदृश्य का भी रोचक वर्णन है। टिहरी रियासत का योगदान और कुमाऊँ का प्रतिभाग अध्याय में दी गयी जानकारी पहली बार पब्लिक डोमेन में आ रही है। प्रथम विश्वयुद्ध के शहीद गढ़वाली सैनिकों की प्रामाणिक सूची भी महत्वपूर्ण है जिसकी सहायता से किसी भी गाँव-इलाके के शहीदों की ऐतिहासिक जानकारी मिल सकती है।

यह भी पढ़ें 👉  केन्द्रीय कर्मचारियों की बल्ले-बल्ले, सरकार ने किया बड़ा ऐलान, दशहरा से पहले 30 दिन का बोनस

पुस्तक के लेखक देवेश जोशी ने कहा कि इस पुस्तक में राजा का नहीं बल्कि प्रजा का इतिहास है। शिक्षा और विकास के मामले में अत्यंत विपन्न तत्कालीन गढ़वाल के अभावग्रस्त परिवारों के सीधे-सरल सैनिकों के योगदान को तलाशना और समझना अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य था। दो वर्ष पूर्व प्रथम विश्वयुद्ध के नायक कैप्टन धूम सिंह चौहान पर एक लोकप्रिय पुस्तक लिख चुके लेखक देवेश जोशी ने यह भी बताया कि इस विषय पर हिंदी में प्रकाशित यह एक तरह से पहली पुस्तक है।

यह भी पढ़ें 👉  CM धामी ने मुख्यमंत्री आवास में प्रदेश में चल रहे जी.एस.टी. एवं स्वदेशी जागरूकता अभियान की समीक्षा बैठक की

लोक कवि नरेन्द्र सिंह नेगी द्वारा इस अवसर पर प्रथम विश्वयुद्ध का आइकन गढ़वाली गीत _’सात समोदर पार छ जाण ब्वे…’_ भी सुनाया गया।

कार्यक्रम का संचालन गणेश खुगशाल ‘गणी’ द्वारा किया गया। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी व निकोलस द्वारा द्वारा उपस्थित अतिथियों और सभागार में मौजूद श्रोताओं का स्वागत व धन्यवाद किया गया। यह पुस्तक, विनसर पब्लिकेशन,देहरादून से प्रकाशित हुई है. पुस्तक अमेजाॅन पर भी उपलब्ध है।

इस अवसर पर ललित मोहन रयाल,अपर सचिव,उत्तराखंड शासन, डॉ.नंदकिशोर हटवाल, एस. एस. रौतेला, कल्याण सिंह रावत, शूरवीर सिंह रावत,घनानंद घनशाला, चन्दन सिंह नेगी, देवेंद्र कांडपाल, डॉली डबराल, शिव जोशी, कांता डंगवाल,चन्द्रशेखर सेमवाल, सुरेंद्र सजवाण, कीर्ति नवानी, सुंदर सिंह बिष्ट, पुष्पलता ममगाईं,विवेक तिवारी शैलेन्द्र नौटियाल, वी.के.डोभाल सहित, लेखक, साहित्यकार, इतिहास प्रेमी, व अन्य गणमान्य लोग मौजूद थे.

Continue Reading
Advertisement

More in उत्तराखंड

उत्तराखंड

उत्तराखंड

ADVERTISEMENT

Advertisement
Advertisement

ट्रेंडिंग खबरें

ADVERTISEMENT

Advertisement
To Top